Indus

Monday, September 20, 2010

एक अनकही कहानी हूँ मैं

कभी एक बहती नदिया
कभी गहरा ताल
कभी मजबूत पहाड़िया
कभी फैला मैदान
कभी हरी भरी वादिया
कभी उजाड़ बंजर
कभी मेले की चहलकदमिया
कभी सुनसान अकेलापन
कभी हसती खेलती दुनिया
कभी आंसुयो का सैलाब
कभी हर किसी की सुनी
तो कभी एक अनकही
कहानी हूँ मैं 

6 comments:

  1. bahut badiya ...
    kabhi aansuon ka sailaab,
    kabhi har kisi ki suni,
    to kabhi ek ankahi kahani hu mai..
    bahut khoob...

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  2. सच ही कहा है ये ही तो है एक नारी का मन

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  3. हर औरत की कहानी। बहुत खूब। बधाई शिवलिका।

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  4. हर इंसान अपने आप में एक कहानी है ....
    बहुत खूब लिखा है ...

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  5. बहुत ही सुन्‍दर शब्‍द रचना ।

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  6. बहुत सुन्दर और लाजवाब रचना लिखा है आपने! बधाई!
    मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
    http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/

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