Indus

Saturday, December 29, 2012

सपने मेरी दुनिया

हर पल सपनो में रहती हूँ मैं
कल कल नदिया सी बहती हूँ मैं 
कभी बादलों में उडती हूँ और 
कभी सागर में मिलती हूँ मैं  
फूलों सी महकाऊ कभी 
कभी पूरी बगिया हूँ मैं 
खूब कभी रोती रहती हूँ 
और कभी बहुत हँसती हूँ मैं 
हर पल एक नया ख्वाब और 
नयी दुनिया सजा लेती हूँ मैं 



Saturday, September 24, 2011

बेटी

हर पल खुशिया फैलाती रहती
एक नदिया जैसे बहती रहती
कहीं चमकती  ओस की बूँद
कहीं अंधेरो में घिरी रहती
कभी फूलो सी नाजुक बन लहराती
कभी बन चट्टान तूफानों से लडती
एक ख़ुशी किसीको देने को खुद
काटों पर भी चल जाती
घर की लाज बचने को वो
खुद की कुरबानी दे जाती
एक प्यार भरी नजर से ही वो
सौ दुखो में भी हँसा जाती
एक घर में परायी अमानत है
दूजे में भी परायी ही मानी जाती
हर दुःख हर दर्द खुद में समेटकर
एक मकान को घर बनाती
वो सौ कष्ट सहकर भी खुद
हर मुश्किल से बचा जाती
पर फिर भी कोई उसे अपना न सके
कहीं जन्म से पहले कही शादी के बाद
कोई खुद मार देता है कोई मरने को मजबूर कर देता
फिर भी कभी शिकायत नही 
कोई शिकवा नही लबों पर 
बस किसीकी खुशियों की खातिर मुस्काती 
किसी घर ख़ुशी की लहर बन जाती
किसी घर आने से पहले ही मर जाती
कभी नवदुर्गा बन पूजी जाती 
कभी काली बन हर दुःख से लडती
इतने उपकार हैं बेटी के पर
फिर भी बस कविता बन रह जाती

Thursday, August 25, 2011

सावन


कुछ अजीब सा आलम है अहसासों का
बाहर ख़ुशी के बहते पैमानों का
दिल के भीतर दर्द के सैलाबों का
वो सावन के झूलो और ठंडी फुहारों का
हर पल हँसती गाती उन बहारो का
कुछ अजीब सा आलम है अहसासों का
आज की व्यस्त जिंदगी में बेमाना
पर बीती कुछ भीगी सुहानी यादो का
वो अदरक की चाय वो भीगे हुए हम
उन गरमा गरम पकौरों का
सच कुछ अजीब सा आलम है अहसासों का
 

Wednesday, January 5, 2011

हर अपना भी बेगाना हो जाता है

अपने पर विश्वास अगर हो,
इंसान सब कुछ सह जाता है
क्या अपनी नजरो से गिरकर,
कोई कही खुश रह पाता है
सपने पूरे होने जाने पर,
हर कोई खुशिया बिखराता है
टूटते हुए सपनो को देख क्यों
हर कोई मन में ही घबराता है
खुशिया मिलने पर जब इक,
अन्जान भी अपना बन जाता है
फिर कोई दुखों  से घिरने पर,
हर अपना भी बेगाना हो जाता है

Monday, December 13, 2010

मैं

हर पल किसीको अपने साथ देखती हूँ मैं
अब अचानक ही अकेले मुस्काती हूँ मैं
सोचा कभी क्या हो गया है मुझको,
तो बस उलझकर ही रह गयी हूँ मैं
क्या कहूँ, किसे कहूँ, कोई है नही सुनाने को
आजकल तो सिर्फ अपनी ही सहेली बन गयी हूँ मैं
हर राज मेरा, मुझ तक ही सिमट गया है
उसे शब्द देने में असमर्थ हो गयी हूँ मैं
हर पल चहकना तितली पकड़ना अब कहा
वो बचपन जैसे कही भूल आई हूँ मैं
सहेलियों को छोड़ अपने में सिमट सा गयी हूँ मैं
दिल की उलझनों में कभी इक पहेली बन गयी हूँ मैं
किसी पल अचानक से रोई और फिर
खुद ही खुद पे मुस्कुराती हूँ मैं

Tuesday, November 30, 2010

तो चले जाना

जरा हंस लूं फिर चले जाना
मुस्का लूं तब चले जाना
गुजरे कल को भुला लूं तो चले जाना
प्यार किया था ये भूल जायू तो चले जाना
मज़बूरी है ये तेरी मालूम है मुझे
बस इक पल तुझे अपना बना लूं फिर चले जाना
मेरे प्यार को तू समझ जाये तो चले जाना

Wednesday, November 24, 2010

हर पल मैं मुस्काती रहती

मैं हर गम में ख़ुशी तलाशती रहती
जो मिले उसे ही गले लगाती चलती
कभी किसी को नहीं सुनती अपने गम
बस हर किसी के गम को सुनती रहती
दिल के हर गम को अकेले में बहती
बहार सबको खूब हंसाती रहती
हर कोई ईश्वर का अंश है जानती
इस लिए सबको मैं पूजते रहती
बहुत पावन है मनुष्य योनी
इसीलिए हर पल मैं मुस्काती रहती