Indus

Wednesday, November 24, 2010

हर पल मैं मुस्काती रहती

मैं हर गम में ख़ुशी तलाशती रहती
जो मिले उसे ही गले लगाती चलती
कभी किसी को नहीं सुनती अपने गम
बस हर किसी के गम को सुनती रहती
दिल के हर गम को अकेले में बहती
बहार सबको खूब हंसाती रहती
हर कोई ईश्वर का अंश है जानती
इस लिए सबको मैं पूजते रहती
बहुत पावन है मनुष्य योनी
इसीलिए हर पल मैं मुस्काती रहती

5 comments:

  1. 3.5/10

    कविता कैसी भी हो किन्तु अन्दर के भाव शबनम की तरह पाक हैं.
    ऐसा ही सरल और मासूम लेखन जारी रखिये.

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  2. खुबसूरत रचना
    बधाई
    और ब्लॉग पर आने को आभार

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  3. बहुत ही सुन्‍दर शब्‍द लिये हैं इस प्रस्‍तुति में ।

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  4. बहुत पावन है मनुष्य योनी
    इसीलिए हर पल मैं मुस्काती रहती
    उमदा विचार। बधाई।

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  5. हर पल मुस्कराना और दूसरों को हँसाना भी एक कला है

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