मैं हर गम में ख़ुशी तलाशती रहती
जो मिले उसे ही गले लगाती चलती
कभी किसी को नहीं सुनती अपने गम
बस हर किसी के गम को सुनती रहती
दिल के हर गम को अकेले में बहती
बहार सबको खूब हंसाती रहती
हर कोई ईश्वर का अंश है जानती
इस लिए सबको मैं पूजते रहती
बहुत पावन है मनुष्य योनी
इसीलिए हर पल मैं मुस्काती रहती
3.5/10
ReplyDeleteकविता कैसी भी हो किन्तु अन्दर के भाव शबनम की तरह पाक हैं.
ऐसा ही सरल और मासूम लेखन जारी रखिये.
खुबसूरत रचना
ReplyDeleteबधाई
और ब्लॉग पर आने को आभार
बहुत ही सुन्दर शब्द लिये हैं इस प्रस्तुति में ।
ReplyDeleteबहुत पावन है मनुष्य योनी
ReplyDeleteइसीलिए हर पल मैं मुस्काती रहती
उमदा विचार। बधाई।
हर पल मुस्कराना और दूसरों को हँसाना भी एक कला है
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