Indus

Saturday, September 24, 2011

बेटी

हर पल खुशिया फैलाती रहती
एक नदिया जैसे बहती रहती
कहीं चमकती  ओस की बूँद
कहीं अंधेरो में घिरी रहती
कभी फूलो सी नाजुक बन लहराती
कभी बन चट्टान तूफानों से लडती
एक ख़ुशी किसीको देने को खुद
काटों पर भी चल जाती
घर की लाज बचने को वो
खुद की कुरबानी दे जाती
एक प्यार भरी नजर से ही वो
सौ दुखो में भी हँसा जाती
एक घर में परायी अमानत है
दूजे में भी परायी ही मानी जाती
हर दुःख हर दर्द खुद में समेटकर
एक मकान को घर बनाती
वो सौ कष्ट सहकर भी खुद
हर मुश्किल से बचा जाती
पर फिर भी कोई उसे अपना न सके
कहीं जन्म से पहले कही शादी के बाद
कोई खुद मार देता है कोई मरने को मजबूर कर देता
फिर भी कभी शिकायत नही 
कोई शिकवा नही लबों पर 
बस किसीकी खुशियों की खातिर मुस्काती 
किसी घर ख़ुशी की लहर बन जाती
किसी घर आने से पहले ही मर जाती
कभी नवदुर्गा बन पूजी जाती 
कभी काली बन हर दुःख से लडती
इतने उपकार हैं बेटी के पर
फिर भी बस कविता बन रह जाती

10 comments:

  1. कभी नवदुर्गा बन पूजी जाती
    कभी काली बन हर दुःख से लडती
    इतने उपकार हैं बेटी के पर
    फिर भी बस कविता बन रह जाती

    यह पंक्तियाँ विशेष प्रभावित करती हैं।

    सादर

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  2. इतने उपकार हैं बेटी के पर
    फिर भी बस कविता बन रह जाती

    बिल्‍कुल सही कहा है आपने ... ।

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  3. very nice........keep it up.

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  4. बिलकुल सही लिखा है आपने ...

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  5. भावों ने मन को अंदर तक भिगो दिया..

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  6. बहुत सुन्दर, हृदयसपर्शी रचना| धन्यवाद|

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  7. bhauk rachna hai...
    jai hind jai bharat

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  8. भावमय करती शब्‍द रचना ।

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  9. ♥(¯`'•.¸(¯`•*♥♥*•¯)¸.•'´¯)♥
    ♥नव वर्ष मंगबलमय हो !♥
    ♥(_¸.•'´(_•*♥♥*•_)`'• .¸_)♥




    एक घर में परायी अमानत है
    दूजे में भी परायी ही मानी जाती

    ओऽह !
    बहुत मार्मिक ! बहुत संवेदनशील !

    आदरणीया शिवालिका जोशी जी
    बहुत भावनाओं में बहने के बाद ही लिखी जा सकती है बेटी के लिए कविता ! आपकी लेखनी से सदैव सुंदर , सार्थक , श्रेष्ठ सृजन होता रहे …

    # समय मिलने पर मेरी एक रचना
    निम्नांकित लिंक पर क्लिक करके पढ़ लें -

    भोली निश्छल प्यारी बेटी
    नन्ही राजदुलारी बेटी
    तुलसी कुंकुम रोली चंदन
    महकी-सी फुलवारी बेटी



    नव वर्ष की शुभकामनाओं सहित…
    राजेन्द्र स्वर्णकार
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