हर पल किसीको अपने साथ देखती हूँ मैं
अब अचानक ही अकेले मुस्काती हूँ मैं
सोचा कभी क्या हो गया है मुझको,
तो बस उलझकर ही रह गयी हूँ मैं
क्या कहूँ, किसे कहूँ, कोई है नही सुनाने को
आजकल तो सिर्फ अपनी ही सहेली बन गयी हूँ मैं
हर राज मेरा, मुझ तक ही सिमट गया है
उसे शब्द देने में असमर्थ हो गयी हूँ मैं
हर पल चहकना तितली पकड़ना अब कहा
वो बचपन जैसे कही भूल आई हूँ मैं
सहेलियों को छोड़ अपने में सिमट सा गयी हूँ मैं
दिल की उलझनों में कभी इक पहेली बन गयी हूँ मैं
किसी पल अचानक से रोई और फिर
खुद ही खुद पे मुस्कुराती हूँ मैं
प्यार में अक्सर ऐसा होता है .. अपना गुमान नही रहता ... बहुत अच्छा लिखा है ...
ReplyDeleteयहीं तो ये साबित हो जाता है की किसी प्रेम में बंध गयी हैं आप
ReplyDeleteबहुत सुन्दर ! आपने ब्लोग के ज़रिए आप अपने मन की बात यूं ही बांटा करें !
ReplyDeleteबहुत अच्छी मन-भवन रचना है
ReplyDeleteपहले कह दी गयी
हर टिप्पणी का अनुमोदन करता हूँ !!
प्यार मे यही तो होता है, अच्छी भावमय रचना के लिये बधाई।
ReplyDeletesach me dil ko chune wali hai aapki dil ki kahani
ReplyDeleteन जाने ये प्यार हैं या ज़िंदगी से मिलीं हसीं यादें...
ReplyDeleteजो भी हैं...
बस आप यूँही मुस्कुरातीं रहें...
V.Nice... Keep it up
ReplyDelete------------
www.gunchaa.blogspot.com
बोलीवुड में कोशिश कीजिये, सोंग राइटर बन सकती हैं आप ...
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