Indus

Monday, December 13, 2010

मैं

हर पल किसीको अपने साथ देखती हूँ मैं
अब अचानक ही अकेले मुस्काती हूँ मैं
सोचा कभी क्या हो गया है मुझको,
तो बस उलझकर ही रह गयी हूँ मैं
क्या कहूँ, किसे कहूँ, कोई है नही सुनाने को
आजकल तो सिर्फ अपनी ही सहेली बन गयी हूँ मैं
हर राज मेरा, मुझ तक ही सिमट गया है
उसे शब्द देने में असमर्थ हो गयी हूँ मैं
हर पल चहकना तितली पकड़ना अब कहा
वो बचपन जैसे कही भूल आई हूँ मैं
सहेलियों को छोड़ अपने में सिमट सा गयी हूँ मैं
दिल की उलझनों में कभी इक पहेली बन गयी हूँ मैं
किसी पल अचानक से रोई और फिर
खुद ही खुद पे मुस्कुराती हूँ मैं

9 comments:

  1. प्यार में अक्सर ऐसा होता है .. अपना गुमान नही रहता ... बहुत अच्छा लिखा है ...

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  2. यहीं तो ये साबित हो जाता है की किसी प्रेम में बंध गयी हैं आप

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  3. बहुत सुन्दर ! आपने ब्लोग के ज़रिए आप अपने मन की बात यूं ही बांटा करें !

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  4. बहुत अच्छी मन-भवन रचना है
    पहले कह दी गयी
    हर टिप्पणी का अनुमोदन करता हूँ !!

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  5. प्यार मे यही तो होता है, अच्छी भावमय रचना के लिये बधाई।

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  6. sach me dil ko chune wali hai aapki dil ki kahani

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  7. न जाने ये प्यार हैं या ज़िंदगी से मिलीं हसीं यादें...
    जो भी हैं...
    बस आप यूँही मुस्कुरातीं रहें...

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  8. V.Nice... Keep it up
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    www.gunchaa.blogspot.com

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  9. बोलीवुड में कोशिश कीजिये, सोंग राइटर बन सकती हैं आप ...

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