Indus

Tuesday, November 30, 2010

तो चले जाना

जरा हंस लूं फिर चले जाना
मुस्का लूं तब चले जाना
गुजरे कल को भुला लूं तो चले जाना
प्यार किया था ये भूल जायू तो चले जाना
मज़बूरी है ये तेरी मालूम है मुझे
बस इक पल तुझे अपना बना लूं फिर चले जाना
मेरे प्यार को तू समझ जाये तो चले जाना

Wednesday, November 24, 2010

हर पल मैं मुस्काती रहती

मैं हर गम में ख़ुशी तलाशती रहती
जो मिले उसे ही गले लगाती चलती
कभी किसी को नहीं सुनती अपने गम
बस हर किसी के गम को सुनती रहती
दिल के हर गम को अकेले में बहती
बहार सबको खूब हंसाती रहती
हर कोई ईश्वर का अंश है जानती
इस लिए सबको मैं पूजते रहती
बहुत पावन है मनुष्य योनी
इसीलिए हर पल मैं मुस्काती रहती

Sunday, November 7, 2010

इक नन्ही कविता हूँ मैं

कल कल करके बहती हुई
इक गहरी सरिता हूँ मैं
सुंदर फूलों से महकती हुई
इक प्यारी वनिता हूँ मैं
अपने मन के हर सपने की
खुद ही रचिता हूँ मैं
पल में रूठू पल में मानु
ऐसी नन्ही गुडिया हूँ मैं
सामने वाले कुछ भी सोचे
अपने मन की मलिका हूँ मैं
बस दिल की बाते लिखती हूँ
नहीं मैं कोई कवित्री नहीं बस
ईश्वर द्वारा लिखी गयी
इक नन्ही कविता हूँ मैं



Thursday, October 28, 2010

कुछ सबको आज सुनाने को दिल करता है

कुछ सबको आज सुनाने को दिल करता है
दूर तारों में मेरा भी कोई झिलमिल करता है
अपनों को छोड़ यही तारो से हिलमिल रहता है
सोच उसे हर पल मन सावन सा रिमझिम रहता है
हर पल उसके साथ बिताया बचपन रहता आँखों में,
कानो में उसकी ही आवाजे गूंजा करती हैं
वो मेरी छोटी बहन, मेरी हर पल की संगी साथी,
छोड़ मुझे, ऊपर तारों से मिलकर उनसे हिलमिल रहती है

Monday, October 11, 2010

मैं एक नन्ही सी कविता

मैं एक नन्ही सी कविता
जो सबको खुश कर जाऊं
कभी मैं बहती सरिता
जो मन को शीतल कर जाऊं
किसी पल मैं उडती तितली
हर दिल को बहलाऊं
कभी मैं बन एक हिरनी
वन उपवन में छा जाऊं
कभी मै बनकर हसीं
सबके होठों पर मुस्काऊं
कभी बनू मै कटुता औ
आँखों से आंसू छल्काऊं
कभी बनकर ख़ुशी इक
हर जीवन को हरषाऊ
कभी लाकर लहर इक गम की
लाखो आंसू दे जाऊं

Thursday, September 30, 2010

कलियाँ

सुबह सुबह खिलती है कलियाँ
बनकर फूल महकती है कलियाँ
खुशबू से सबको हर्षाती है कलियाँ
मन को महका जाती है कलियाँ
दिन भर सबको खुशियाँ देकर
शाम को मुरझा जाती कलियाँ
ये दुनिया जन्नत बन जाये
अगर सभी बन जाये कलियाँ

Monday, September 20, 2010

एक अनकही कहानी हूँ मैं

कभी एक बहती नदिया
कभी गहरा ताल
कभी मजबूत पहाड़िया
कभी फैला मैदान
कभी हरी भरी वादिया
कभी उजाड़ बंजर
कभी मेले की चहलकदमिया
कभी सुनसान अकेलापन
कभी हसती खेलती दुनिया
कभी आंसुयो का सैलाब
कभी हर किसी की सुनी
तो कभी एक अनकही
कहानी हूँ मैं